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रंग महल में अजब शहर में || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)

2019-11-27 38 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />२० अप्रैल २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />भजन<br /><br />रंग महल में अजब शहर मे<br />रंग महल में अजब शहर में आजा रे हंसा भाई<br />निर्गुण राज पे सिर्गुण सेज बिछाई<br />है रे इना देवलिया में देव नाही,<br />झलर कूटे गरज कासी<br />रंग महल में अजब शहर मे…..<br /><br />हारे भाई, बेहद की तो गम नाही,नुगरा से सेन किसी<br />रंग महल में अजब शहर मे….<br />हा रे भाई अमृत प्याला भर पाओ<br />भाईला से भ्रान्त कसी<br />रग महल में अजब शहर में आजा रे हंसा….<br />हा रे भाई कहे कबीर विचारसेन माहि सेन मिली<br />रंग महल में अजब शहर में…<br /><br />प्रसंग:<br />कबीर साहब "हंस" का प्रयोग किसके लिये कर रहे है?<br />"निर्गुण राज पे सिर्गुण सेज बिछाई" का क्या आशय है?<br />मंदिर में देव नहीं ऐसा क्यों बता रहे है कबीर साहब ?<br />नुगरा का क्या अर्थ है?

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